
रेप की घटनाएं दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है. ये दृश्य रोज हमें टीवी और समाचार के माध्यम से सुनने को मिलता है. ऐसे में सवाल यह उठता है कि हम किस समाज में जी रहे है. सवाल ये भी उठता है कि ये कैसे लोग है जिनकी मानसिक अवस्था ऐसी हो जाती है, जिनमें किसी के भी दर्द का एहसास मर जाता है, जिसमें किसी मजलूम की चिख सुनाई नहीं देती. हम सभी को सोचना होगा कि हम कहा जा रहे है हम कैसा समाज बना रहे है, हम अपनी भावी पीढ़ी को क्या दे रहे है?
बलात्कार का नाम सुनकर ही काँप जाती है रूह:
क्या हम ऐसे समाज का निर्माण कर रहे है जहां हमारी मां-बहनें और बेटियां, जो हमारा भारतीय संविधान है उसमें निहित न्याय, स्वतंत्रता, समानता और बंधुता को समान अर्थ मे महसूस कर सकते है. हम सभी की जिम्मेदारी बनती है कि देश के किसी भी भाग में हमारी नारी शक्ती के साथ ऐसा न हो. बलात्कार एक ऐसा शब्द है जिसे सुनकर ही रुह काप जाती है। ज़रा सोचिए जब एक स्त्री उस पीड़ा से गुज़रती है तब कितना मुश्किल होता होगा। उसको अपने जीवन को आम जीवन से जोड़ पाना, कितनी तकलीफ़ देह होती है.
हर घंटे दर्ज होते हैं 106 बलात्कार के मामले:
एक स्त्री के लिए उसकी इज्ज़त ही उसका गहना होता है. अगर वह गहना चोरी हो जाऐ तो सोचिए उस पर क्यां गुजरती होगी? ये कैसे लोग हैं जिनकी मानसिकता इतनी गिर गयी है कि उसको, किसी की सिसकियां सुनाई नहीं देती. किसी के आंखों के आंसू दिखाई नहीं देते. ऐसे लोग समाज का हिस्सा नहीं हो सकते और उन्हें समाज मे जीने का भी अधिकार नहीं है. राष्ट्रीय अपराध रिकोर्ड ब्यूरों के अनुसार देश में हर घंटे 106 मामले बलात्कार के दर्ज किये जाते है, हर आधे घण्टे मे 4 औरते बलात्कार की शिकार हो जाती है.
- 2016 में देश में बलात्कार के 38,947 मामले दर्ज किये गए, जिसमें 19,766 मामले बच्चों के थे.
- 2015 के मुकाबले 2016 में बलात्कार के 82 फीसद ज्यादा मामले.
- 10 वर्ष में भारत में 2,78,886 दुष्कर्म के मामले दर्ज किये गये.
बलात्कार के मामले में सबसे आगे है मध्य प्रदेश:
देश में सबसे ज्यादा बलात्कार के मामले में मध्य प्रदेश का स्थान पहला जहां 5,076 मामले दर्ज किये गये, दूसरे स्थान पर उत्तर प्रदेश आता जहां 4,882 मामले दर्ज है जिसमें केवल 573 गैंग रेप है. तीसरे पर महाराष्ट्र है जहां 4,186 मामले दर्ज है. चौथे पर राज्यस्थान है जहां 3,467 मामलों में से केवल 494 गैंग रेप है. फिर दिल्ली जहां 1,813 मामले दर्ज किये गये, जिनमें 147 गैंग रेप है. इसके बाद ओड़िसा है जहां 2014 में 82 गैंग रेप हुएं.
हुआ था पाँच बार क्रॉस एग्जामिनेशन:
2014 से 2016 तक एक लाख से ज्यादा नाबालिंगों के साथ रेप के मामले दर्ज किये गये. इन सभी मामलों में कुल अपराधियों में से सिर्फ 11,266 को ही सजा मिल सकी. क्या इंसाफ है, ऐसे में समाज कैसे सुधरे जहां अपराधियों के प्रति कानून लचिला है. मानवाधिकार की कार्यकर्ता खुदिज़ा फारुकी जो महिलाओं के लिए काम करती है. इन्होंने भी इस दर्द को झेला है. उनके साथ 2000 में इनके साथ एक यौन हिंसा हुई थी. उन्होंने बताया कि बस कंडक्टर ने मेरे शरीर को कही छू दिया. वो केस इन्होंने 2000 से 2013 तक लड़ा. वह बताती हैं कि वह 175 बार अदालत गयी है, जिसमें पांच बार क्रॉस एग्जामिनेशन हुआ है. वह कहती है मेरे जैसी औरत को उसने हिला दिया तो सोचो आम औरतों क्या हालत होती होगी.
अब खुलकर आ रहे हैं सामने:
16 दिसम्बर 2012 को निर्भया के साथ हुई घटना से जग- ज़ाहिर है. दोषियों को सज़ा दिलाने के लिये लोग सड़कों पर उतर आये थे. वह ऐसा मुद्दा था जब सम्पूर्ण समाज एकजुट हो गया था, और दोषियों को भी सज़ा मिली थी. निर्भया काण्ड के बाद ही बलात्कार और यौंन उत्पीड़न से जुड़े कानूनों की समिक्षा की गयी एवं उन्हें और भी सख्त बनाया गया. इसके बाद लोग ऐसी घटनाओं के बाद चुप्पी साधने के बावजूद खुलकर सामने आने लगे. 3 फरवरी 2013 को अपराधी कानून शंसोधन अधिनियम लाया गया. जिसके तहत बलात्कार संबंधी मामलों में काफी बदलाव लाया गया. इसके साथ ही उसकी सज़ा को और सख्त किया गया.
12 साल से कम उम्र की बच्चियों के साथ बलात्कार करने पर मौत की सज़ा:
पोक्सो यानी प्रोटेक्शन आंफ चिल्ड्रेन फ़्राम सेक्सुअल आंफेंसेस एक्ट के तहत 18 से कम उम्र में यौन शोषण, बलात्कार, और पोर्नोग्राफी जैसै मामलों में सुरक्षा प्रदान की जाती है. इस कानून की अनेक धाराओं में अलग- अलग अधराओं और सज़ा का प्रावधान है. इस कानून के तहत वह नाबालिग़ भी आते है, जिनकी 18 साल से पहले शादी कर दी जाती है. यदि 18 के कम उम्र के साथी के साथ बिना रजामंदी से यौन संबंध बनाया जाता है तो ये भी पाक्सों अपराध की श्रेणी मे आता है. कठुआ मामले के बाद पॉक्सो एक्ट और भी चर्चा में आ अगा है. केन्द्र सरकार ने एक कदम उठाते हुए, इसमें संसोधन का अध्यादेश लायी. जिसमें 12 साल से कम उम्र की बच्चियों से दुष्कर्म के मामले में मौत की सज़ा का प्रावधान किया गया है. जबकि अधिकतम उम्र कैद की सज़ा थी. जिसे 22 अप्रैल 2018 को वर्तमान राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने मंजूरी दे दी.
बलात्कार की घटनाओं को कम करने के लिए समाज और देश को अपनाना होगा ये क़दम:
- हमें बेटा- बेटी में भेद नहीं करना होगा,
- विद्यालयों में संविधान की पढाई जरुरी,
- स्कूलों में नैतिक शिक्षा जरुरी,
- स्कूलों के अंदर मोरल साइंस की जानकारी देनी जरुरी,
- महिला सशक्तिकरण की जानकारी की अगर ऐसा होता तो क्या-क्या प्रावधान है क्या कानून है,
सरकार ने उठाए ये क़दम:
- यौन शोषण मामले पर सुप्रिम कोर्ट ने जारी किया दिशा- निर्देश
- उच्च न्यायलयों को मामलों को जल्द निपटारे का दिशा निर्देश
- पॉक्सों के मामलों का फास्ट ट्रैक कोर्ट के जरिये निपटारा
- छोटी बच्चियों से बलात्कार के अपराध में मौत की सज़ा
- जांच के लिए एक समर्पित पुलिस बल होगा
- पुलिस बल समय सीमा में जांच कर आरोप पत्र पेश करेगा
देश तभी बढ़ेगा जब हमारी बहनें बिना रोक- टोक के कही भी जा सके. उन्हें आज़ादी हो अपनी राह चुनने में.
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